Monday 10 February 2014

२ फरवरी २०१४ का दिन एक ऐतिहासिक राजनीतिक शुरुआत का दिन कहा जा सकता है क्योंकि जिसकी दुन्दुभी भले ही अभी सभी को सुनाई न पड़ी हो मगर राजनीतिक पंडितों का मानना है कि माता प्रसाद शुक्ला और उनके साथियों ने "भारतीय राष्ट्रीय जनसत्ता" के झण्डे तले इकठ्ठा होकर जन्तर-मन्तर में जो शंखनाद कर दिया है वह भारतीय जनमानस के स्वाभिमान को जगाने का जागरण घोष है | "भारतीय राष्ट्रीय जनसत्ता" के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री माता प्रसाद शुक्ला ने जब जन्तर-मन्तर के प्रांगण से लोंगों को सम्बोधित करते हुये कहा- कि जब भारतीय उच्च न्यायलयों में हम अपनी न्यायिक लड़ाई तक अपनी राष्ट्रभाषा- राजभाषा में नहीं लड़ सकते तब यह कैसी आजादी? कैसा लोकतंत्र?.... तब सभा में बैठे हुये लोंगों की ताली की गड़गड़ाहट मानो यह संकेत दे रही थी कि भारतीय आवाम अब पुनर्जागरण के लिये तैय्यार हो रहा है | सच तो यही है कि अब तक तथाकथित जननेता बने खलनायकों ने जनहित के मुद्दों को जानबूझ कर उठाया ही नहीं क्योंकि उन्हें जनहित से नहीं स्वहित साधन से ही लगाव था | अब "भारतीय राष्ट्रीय जनसत्ता" के आगाज से यह निश्चित हुआ है कि जनहित के सच्चे मुद्दे उठाने वाले और अंतिम सांस तक उनके लिये लड़ने वाले ही जननायक बनकर उभरेगें | वैसे "भारतीय राष्ट्रीय जनसत्ता" ने २ फरवरी २०१४ को राष्ट्रभाषा-राजभाषा आन्दोलन की शुरुआत करने का यह बौद्धिक विमर्श का आयोजन किया था, आने वाले समय में "भारतीय राष्ट्रीय जनसत्ता" इस आन्दोलन को भारत के शहर-शहर, गाँव-गाँव तक ले जाने का संकल्प ले चुकी है | अतः कहा जा सकता है कि राष्ट्रभाषा-राजभाषा आन्दोलन की शुरुआत एक नई राजनीतिक क्रांति का शंखनाद है

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